Wednesday, July 21, 2010

ASTROLOGY-1

क्या परेशान है बीमारी से?


शरीर में नए नए रोग होना, बहुत इलाज के बाद रोग ठीक न होना, एक के बाद एक का घर में रोगी होना, कुछ समझ न आना कि ऐसे में क्या उपाय करें? इसका क्या कारण है?ज्योतिष शास्त्र के अनुसार इसका उपचार किया जा सकता है। पत्रिका का षष्ठ भाव बीमारी का कारण होता हैं। षष्ठ भाव मे राहु हो तो नाना प्रकार के रोग होते हैं। केतु हो तो चर्म रोग होते हैं। चंद्र हो तो सर्दीजनित रोग होते हैं। सूर्य के कारण पित्त रोग तथा शनि हो तो बवासीर तथा अन्य गुप्त रोग होते हैं। इसी भाव में यह ग्रह अगर नीच के या शत्रु भाव राशि या अशुभ स्थिति में हो तो यह रोग ज्यादा तकलीफदेह हो जाते हैं। राहु की महादशा में भी गुप्त रोगों की संभावना अधिक होती है।अगर षष्ठ भाव पर अशुभ ग्रह की दृष्टि भी हो तो रोगों का होना जारी रहता है। इसी भाव में यदि शुभ ग्रह की दृष्टि हो तो रोग शीघ्र अच्छा हो जाता है।

उपाय

षष्ठ भाव स्थित अशुभ ग्रह का उपचार कराएं।

भिखारी को भोजन कराएं।

तेल चुपड़ी रोटी शनिवार को कुत्ते को खिलाएं।

एक कटोरी केसर पानी में घोलकर मरीज के कमरे में रख दें।

दो भेद है-कालसर्प के:

कालसर्प एक ऐसा प्रश्र है,जो सबको परेशान करता है। जबकि यह हर समय कष्टकारक नहीं होता इसके दो भेद होते है। 1. उदित 2. अनुदित

१.उदित- उदित योग कष्टकारी होता है। इस योग में कुंडली में बैठे समस्त ग्रह एक-एक करके राहु के मुख में समाते है। अत: यह कष्टकारी योग होता है।


2. अनुदित योग- यह सरल योग होता है। इसमें सभी कुंडली स्थित ग्रह एक-एक कर राहु से मुक्त होते हैं।ऐसा भी देखने में आया है कि कभी सातों ग्रह राहु, केतु के मध्य न आकर एकाध ग्रह अलग हो जाता है। तब भी कालसर्प योग माना जाता है।

अगर चाहिए श्रेष्ठ संतान तो...

जिस तरह विवाह, सगाई, अन्य शुभ कार्यों के मुहूर्त होते उसी तरह गर्भाधान के भी मुहूर्त होते है। हमारे शास्त्रों में ओजस्वी संतान प्राप्त करने हेतु कुछ सफल मुहूर्त बताए गए हैं। शास्त्रों में यह भी वर्णन है कि केवल एक या दो संतान ही उत्पन्न करें। बाकी जीवन गृहस्थ रहकर ही ब्रह्मचर्य का पालन करें। इस बात का स्पष्ट उल्लेख हमारे धर्म ग्रंथों में मिलता है। जब एक या दो संतान करनी हैं तो क्यों न वो श्रेष्ठ हों इसलिए शास्त्रों ने गर्भाधान के मुहूर्त बताए हैं। इनके पालन से निश्चय ही श्रेष्ठ संतान प्राप्त होती है।

- स्त्री के मासिक धर्म से चार रात्रि बाद सम रात्रि में संगम करें।


- यदि कन्या प्राप्ति की इच्छा हो तो विषम रात्री में संगम करें।


- अपनी पत्नी को सदा बाएं ही शयन कराएं।

- दिन में गर्भाधान होने से अल्पायु संतान पैदा होती है।

- गण्डात, सूर्य-चंद्र ग्रहण, मूल, भरणी, अश्विनी, रेवती, मघा, नक्षत्र। अमावस्य, पूर्णिमा, अष्टमी, चतुदर्शी, तिथि। श्राद्ध के दिन। दोपहर के समय। शनिवार, मंगलवार, बुधवार, गुरुवार को गर्भाधान क्रिया नहीं करना चाहिए।

- जिस तिथि को माता पिता का देहांत हुआ हो उस दिन गर्भाधान क्रिया नहीं करना चाहिए।



संतान प्राप्ति का सबसे सरल उपाय है तंत्र में

हर ग्रहस्थ दंपत्ति की यह चिर-अभिलाषा रहती है कि उनके यहां सुसंतति का जन्म हो। उन्हैं सृजन का सौभाग्य प्राप्त हो तथा सांसारिक जीवन में माता-पिता होने का गौरव प्राप्त हो। आचार-शास्त्र के प्रणेता महाराज मनु ने भी संतान प्राप्ति की इच्छा को तीन नैसर्गिक इच्छाओं में से एक माना है। तथा संतान प्राप्ति को पूर्व जन्मों के कर्मों का सुफल माना है। नि:संतान होना किसी दंपत्ति के लिये अपार मानसिक पीड़ा का कारण बन जाता है। होता यह है कि कई बार बात बनते-बनते बिगड़ जाती है या कहें कि कश्ती किनारे पंहुचते-पंहुचते अटक जाती है। ऐसे में जरूरत होती है किसी सहारे की। ईश्वर अनुग्रह, गुरु कृपा, तंत्र-मंत्र-यंत्र के प्रयोग, कोई अनुष्ठान या व्रत-उपवास ये ऐसे ही सहारे हैं जो मंजिल के करीब पंहुची गाड़ी को धकेल कर मंजिल तक पंहुचा देते हैं। ऐसा ही एक अति सरल किन्तु आजमाया हुआ प्रयोग कुछ इस तरह से है-

संतान प्राप्ति का प्रयोग- किसी बालक के पहली बार टूटे हुए दूध के दांत को लेकर, जो स्त्री इसे स्वेत वस्त्र में लपेट कर बाईं भुजा से बांधती है उसे संतान प्राप्ति के योग बनते हैं। मनोकामना पूर्ण होने तक प्रतिदिन सूर्योदय से पूर्व बाल-कृष्ण का १५ मिनिट तक नियमित ध्यान अनिवार्य है।


छप्पर फाड़ के धन देते हैं ऐसे ग्रह योग

यदि आप धन कुबेर बनने का सपना देखते हैं, तो आप अपनी जन्म कुण्डली में इन ग्रह योगों को देखकर उसी अनुसार अपने प्रयासों को गति दें।

१ यदि लग्र का स्वामी दसवें भाव में आ जाता है तब जातक अपने माता-पिता से भी अधिक धनी होता है।



2 मेष या कर्क राशि में स्थित बुध व्यक्ति को धनवान बनाता है।


3 जब गुरु नवे और ग्यारहवें और सूर्य पांचवे भाव में बैठा हो तब व्यक्ति धनवान होता है।


4 शनि ग्रह को छोड़कर जब दूसरे और नवे भाव के स्वामी एक दूसरे के घर में बैठे होते हैं तब व्यक्ति को धनवान बना देते हैं।


5 जब चंद्रमा और गुरु या चंद्रमा और शुक्र पांचवे भाव में बैठ जाए तो व्यक्ति को अमीर बना देते हैं।


6 दूसरे भाव का स्वामी यदि ८ वें भाव में चला जाए तो व्यक्ति को स्वयं के परिश्रम और प्रयासों से धन पाता है।


७ यदि दसवें भाव का स्वामी लग्र में आ जाए तो जातक धनवान होता है।


8 सूर्य का छठे और ग्यारहवें भाव में होने पर व्यक्ति अपार धन पाता है। विशेषकर जब सूर्य और राहू के ग्रहयोग बने।


९ छठे, आठवे और बारहवें भाव के स्वामी यदि छठे, आठवे, बारहवें या ग्यारहवे भाव में चले जाए तो व्यक्ति को अचानक धनपति बन जाता है।

१० यदि सातवें भाव में मंगल या शनि बैठे हों और ग्यारहवें भाव में शनि या मंगल या राहू बैठा हो तो व्यक्ति खेल, जुंए, दलाली या वकालात आदि के द्वारा धन पाता है।


११ मंगल चौथे भाव, सूर्य पांचवे भाव में और गुरु ग्यारहवे या पांचवे भाव में होने पर व्यक्ति को पैतृक संपत्ति से, खेती से या भवन से आय प्राप्त होती है, जो निरंतर बढ़ती है।

१९ गुरु जब दसर्वे या ग्यारहवें भाव में और सूर्य और मंगल चौथे और पांचवे भाव में हो या ग्रह इसकी विपरीत स्थिति में हो व्यक्ति को प्रशासनिक क्षमताओं के द्वारा धन अर्जित करता है।


१२ गुरु जब कर्क, धनु या मीन राशि का और पांचवे भाव का स्वामी दसवें भाव में हो तो व्यक्ति पुत्र और पुत्रियों के द्वारा धन लाभ पाता है।


१३ राहू, शनि या मंगल और सूर्य ग्यारहवें भाव में हों तब व्यक्ति धीरे-धीरे धनपति हो जाता है।

१४ बुध, शुक और शनि जिस भाव में एक साथ हो वह व्यक्ति को व्यापार में बहुत ऊंचाई देकर धनकुबेर बना देता है।

१५ दसवें भाव का स्वामी वृषभ राशि या तुला राशि में और शुक्र या सातवें भाव का स्वामी दसवें भाव में हो तो व्यक्ति को विवाह के द्वारा और पत्नी की कमाई से बहुत धन लाभ होता है।

१६ शनि जब तुला, मकर या कुंभ राशि में होता है, तब आंकिक योग्यता जैसे अकाउण्टेट, गणितज्ञ आदि बनकर धन अर्जित करता है।

१७ बुध, शुक्र और गुरु किसी भी ग्रह में एक साथ हो तब व्यक्ति धार्मिक कार्यों द्वारा धनवान होता है। जिनमें पुरोहित, पंडित, ज्योतिष, प्रवचनकार और धर्म संस्था का प्रमुख बनकर धनवान हो जाता है।


१८ कुण्डली के त्रिकोण घरों या चतुष्कोण घरों में यदि गुरु, शुक्र, चंद्र और बुध बैठे हो या फिर ३, ६ और ग्यारहवें भाव में सूर्य, राहू, शनि, मंगल आदि ग्रह बैठे हो तब व्यक्ति राहू या शनि या शुक या बुध की दशा में अपार धन प्राप्त करता है।


२० यदि सातवें भाव में मंगल या शनि बैठे हों और ग्यारहवें भाव में केतु को छोड़कर अन्य कोई ग्रह बैठा हो, तब व्यक्ति व्यापार-व्यवसार द्वारा अपार धन प्राप्त करता है। यदि केतु ग्यारहवें भाव में बैठा हो तब व्यक्ति विदेशी व्यापार से धन प्राप्त करता है।



क्या आपकी कुण्डली में हैं ऐसे धनयोग

इस संसार में अपवादों को छोड़कर हर व्यक्ति धनवान होना चाहता है। धन व्यक्ति को सुख, आनंद, सुविधा और सामाजिक सुरक्षा देता है। आज दुनिया में धनवान लोगों की संख्या इतनी कम है कि उनकी सूची बनाई जा सकती है। इसकी तुलना में गरीब लोगों की संख्या अधिक है। कुछ लोगों की आय इतनी है कि वह समाज में सम्मान और आदर्श जिंदगी जीते हैं। लेकिन तीनों ही वर्ग को देखें तो पाएंगे कि सभी में समान रू प से धन पाने की चाह होती है।


धन और आय के आधार पर लोगों को अलग-अलग श्रेणियों में बांटा जा सकता है - अत्यधिक धनी, उच्च मध्यम वर्ग, मध्यम वर्ग, गरीब और बहुत गरीब। यह अंतर देखकर यह विचार आना स्वाभाविक है कि आखिर ऐसा क्यों है। जबकि सभी मानव समान है।


ऐसा भी नहीं है कि कोई व्यक्ति धन कमाने की पूरी कोशिश नहीं करता। जहां तक धन कमाने की बात है, हर व्यक्ति इच्छानुसार काम करने को स्वतंत्र होता है। यही कारण है कि कोई व्यक्ति ईमानदारी से धन प्राप्त करना चाहता है और कोई व्यक्ति धन के लिए अपराध का रास्ता चुन लेता है। धन कमाने के तरीकों के चुनाव के पीछे व्यक्ति के मानसिक विचारों का अंतर है। इसी अंतर को ज्योतिष विज्ञान की दृष्टि से जाना जा सकता है। व्यक्ति की जन्म कुण्डली में बनने वाले ग्रह योग से उसके अतीत और भविष्य में धनवान या धनहीन होने के कारणों को पहचाना जा सकता है।


धनयोग देखने के लिए जन्म कुण्डली का दूसरा, छठा और दसवां भाव महत्वपूर्ण होता है। इनके साथ ही ७ और ११ वां भाव के ग्रह योग भी देखे जाते हैं। जन्म कुंडली में दूसरा भाव खुद के द्वारा कमाए धन, छठा भाव ऋण से प्राप्त धन, और दसवां भाव नौकरी या रोजगार से कमाए धन का निर्धारक होता है।

धन के कारक ग्रह सूर्य और गुरु होते हैं। इसलिए सीधा सा नियम है कि जन्म कुण्डली में जब सूर्य और गुरु उच्च के हो और अच्छे भाव में बैठे हो तो वह व्यक्ति को धनवान बनाते हैं।


इसी प्रकार सूर्य और गुरु की उपस्थिति के आधार पर यदि दूसरे भाव के ग्रहयोग की स्थिति मजबूत होती है, तब पैतृक संपत्ति या निवेश द्वारा धन प्राप्त होता है।



जब छठा भाव दूसरे और दसवें भाव की तुलना में मजबूत होता है, तब ब्याज द्वारा धन की प्राप्ति होती है।



अगर दसवां भाव दूसरे और छठा से मजबूत होता है, तब व्यक्ति का अनेक स्त्रोतों से धन प्राप्ति होती है।

जब बारहवां भाव मजबूत स्थिति में हो तो व्यक्ति उधार लिया धन चुका नहीं पाता और ऋणी हो जाता है।


धन योग के लिए एक महत्वपूर्ण नियम यह है कि सूर्य का शत्रुग्रह शनि दूसरे भाव में न बैठा हो और न उसकी दृष्टि हो। इसके साथ ही लग्र से दूसरे भाव और चंद्र के साथ उसका योग न बनता हो।

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